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एक अनसुनी शौर्य गाथा

दोस्तों आज में आपको भारतीय सेना की एक ऐसी वीर गाथा सुनाने जा रहा हु जिसके बारे  में शायद ही कोई जानता हो

ये बात  6 सितंबर, 1965 की है  Jab पाकिस्तानी फ़ौज अचानक से भारत पर हमला कर दिया था उसी हमलों का जवाब देते हुवे पाकिस्तानी फौज के दांत खट्टे करने वाली भारतीय फौज की एक टुकड़ी जाट रेजिमेंट की ये वीर गाथा है

6 सितंबर  को सुबह 9 बजे जाट रेजिमेंट के जवानों  ने पाकिस्तानी फौज के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिएइच्छोगिल नहर की तरफ़ बढ़ना शुरू किया.नहर के किनारे हुई लड़ाई में पाकिस्तानी वायु सेना ने बटालियन के भारी हथियारों को बहुत नुक़सान पहुंचाया. इसके बावजूद 11 बजे तक उन्होंने नहर के पश्चिमी किनारे पर पहले बाटानगर पर कब्ज़ा किया और फिर डोगरई पर.

लेकिन भारतीय सेना के उच्च अधिकारियों को उनके इस कारनामे की जानकारी नहीं मिल पाई. डिवीजन मुख्यालय को कुछ ग़लत सूचनाएं मिलने के बाद उनसे कहा गया कि वो डोगरई से 9 किलोमीटर पीछे हटकर संतपुरा में पोज़ीशन ले लें.

21 सितंबर की रात को जाट रेजिमेंट ने डोगरई पर फिर हमला कर दोबारा उस पर कब्ज़ा किया, लेकिन इस लड़ाई में दोनों तरफ़ से बहुत से सैनिक मारे गए.

इस लड़ाई को दुनिया की बेहतरीन लड़ाइयों में शुमार किया जाता है और इसे कई सैनिक स्कूलों के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है.
मेजर जनरल बी.आर. वर्मा के अनुसार "21 और 22 की रात को हम सब अपनी ट्रेंच में बैठे हुए थे. सीओ लेफ्टिनेंट कर्नल हेड ने ट्रेंच की दीवार से अपना पैर टिकाया हुआ था. जैसे ही पाकिस्तानियों ने गोलाबारी शुरू की उन्होंने अपना हेलमेट लगाया और ट्रेंच के बाहर आकर आ रहे गोलों के बीच चहलक़दमी करने लगे."

ये उनको लोगों को बताने का एक तरीका था कि उन्हें किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है. वो कहा करते थे कि जो गोली मेरी लिए बनी है वही मुझे मार पाएगी. बाकी गोलियों से मुझे डरने की ज़रूरत नहीं है.'
1965 की लड़ाई पर किताब लिखने वाली रचना बिष्ट रावत लिखतीं हैं, "21 सितंबर की रात जब उन्होंने अपने सैनिकों को संबोधित किया तो उनसे दो मांगें की. एक भी आदमी पीछे नहीं हटेगा. और दूसरा ज़िंदा या मुर्दा डोगरई में मिलना है. उन्होंने कहा अगर तुम भाग भी जाओगे, तब भी मैं लड़ाई के मैदान में अकेला लड़ता रहूँगा. तुम जब अपने गाँव जाओगे तो गाँव वाले अपने सीओ का साथ छोड़ने के लिए तुम पर थूकेंगे."
इसके बाद जब सारे सैनिकों ने खाना खा लिया तो वो अपने सहयोगी मेजर शेखावत के साथ हर ट्रेंच में गए और सिपाहियों से कहा, "अगर हम आज मर जाते हैं तो ये बहुत अच्छी मौत होगी. बटालियन आपके परिवारों की देखभाल करेगी. इसलिए आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है."
"हेड की बात सुनकर लोगों में जोश भर गया. उन्होंने एक सिपाही से पूछा भी कि कल कहाँ मिलना है तो उसने जवाब दिया डोगरई में. हेड ने तब तक जाटों की थोड़ी बहुत भाषा सीख ली थी. अपनी मुस्कान दबाते हुए वो बोले, ससुरे अगर सीओ साहब ज़ख्मी हो गया तो क्या करोगे. सिपाही ने जवाब दिया, सीओ साहब को उठाकर डोगरई ले जाएंगे, क्योंकि सीओ साहब के ऑर्डर साफ़ हैं... ज़िदा या मुर्दा डोगरई में मिलना है."

54 इंफ़ैंट्री ब्रिगेड ने दो चरणों में हमले की योजना बनाई थी. पहले 13 पंजाब को 13 मील के पत्थर पर पाकिस्तानी रक्षण को भेदना था और फिर 3 जाट को हमला कर डोगरई पर कब्ज़ा करना था.
लेकिन हेड ने ब्रिगेड कमांडर से पहले ही कह दिया था कि 13 पंजाब का हमला सफल हो या न हो, 3 जाट दूसरे चरण को पूरा करेगी. 13 पंजाब का हमला असफल हो गया और ब्रिगेड कमांडर ने वायरलेस पर हेड से उस रात हमला रोक देने के लिए कहा.
हेड ने कमाँडर की सलाह मानने से इंकार कर दिया. उन्होंने कहा, हम हमला करेंगे बल्कि वास्तव में हमला शुरू हो चुका है.
ठीक 1 बजकर चालीस मिनट पर हमले की शुरुआत हुई. डोगरई के बाहरी इलाके में सीमेंट के बने पिल बॉक्स से पाकिस्तानियों ने मशीन गन से ज़बरदस्त हमला किया.
सूबेदार पाले राम ने चिल्लाकर कहा, "सब जवान दाहिने तरफ़ से मेरे साथ चार्ज करेंगे." कैप्टन कपिल सिंह थापा की प्लाटून ने भी लगभग साथ-साथ चार्ज किया.
जो गोली खाकर गिरे उन्हें वहीं पड़े रहने दिया गया. पाले राम के सीने और पेट में छह गोलियाँ लगीं लेकिन उन्होंने तब भी अपने जवानों को कमांड देना जारी रखा.
हमला कर रहे 108 जवानों में से सिर्फ़ 27 जीवित बच पाए. बाद में कर्नल हेड ने अपनी किताब द बैटिल ऑफ़ डोगरई मे लिखा, "ये एक अविश्वसनीय हमला था. इसका हिस्सा होना और इसको इतने नज़दीक से देख पाना मेरे लिए बहुत सम्मान की बात थी."
कैप्टन बीआर वर्मा अपने सीओ से 18 गज़ पीछे चल रहे थे कि अचानक उनकी दाहिनी जाँग में कई गोलियाँ आकर लगीं और वो ज़मीन पर गिर पड़े.
कंपनी कमांडर मेजर आसाराम त्यागी को भी दो गोलियाँ लगीं, लेकिन उन्होंने लड़ना जारी रखा. उन्होंने एक पाकिस्तानी मेजर पर गोली चलाई और फिर उस पर संगीन से हमला किया.
इस बीच बिल्कुल प्वॉएंट ब्लैंक रेंज से उनको दो गोलियाँ और लगीं और एक पाकिस्तानी सैनिक ने उनके पेट में संगीन भोंक दी.
वो अपना लगभग खुल चुका पेट पकड़कर जैसे ही गिरे हवलदार राम सिंह ने एक बड़ा पत्थर उठा कर उन्हें संगीन भोंकने वाले पाकिस्तानी सिपाही के सिर पर दे मारा.
त्यागी कभी बेहोश हो रहे थे तो कभी उन्हें होश आ रहा था. मैं भी घायल था. मुझे उस झोंपड़ी में ले जाया गया जहाँ सभी घायल सैनिक पड़े हुए थे. जब घायल लोगों को वहाँ से हटाने का समय आया तो त्यागी ने मुझसे कराहते हुए कहा, आप सीनियर हैं, पहले आप जाइए. मैंने उन्हें चुप रहने के लिए कहा और सबसे पहले उनको ही भेजा. उनका बहुत ख़ून निकल चुका था
त्यागी बहुत पीड़ा में थे. उन्होंने मुझसे कहा सर, मैं बचूंगा नहीं. आप एक गोली मार दीजिए. आपके हाथ से मर जाना चाहता हूँ. हम सभी चाहते थे कि त्यागी ज़िंदा रहें.
तमाम प्रयासों के बावजूद 25 सिंतंबर को त्यागी इस दुनिया से चल बसे .

सुबह के तीन बजते-बजते डोगरई पर भारतीय सैनिकों का कब्ज़ा हो गया. सवा छह बजे भारतीय टैंक भी वहाँ पहुंच गए और उन्होंने इच्छोगिल नहर के दूसरे किनारे पर गोलाबारी शुरू कर दी जहाँ से भारतीय सैनिकों पर भयानक फ़ायर आ रहा था.
3 जाट के सैनिकों ने झोपड़ी में छिपे हुए पाकिस्तानी सैनिकों को पकड़ना शुरू किया. पकड़े जाने वालों में थे लेफ़्टिनेंट कर्नल जे.एफ़ गोलवाला जो कि 16 पंजाब (पठान) के कमांडिंग ऑफ़िसर थे.
इच्छोगिल नहर पर लांस नायक ओमप्रकाश ने भारत का झंडा फहराया. वहाँ मौजूद लोगों के लिए यह बहुत गर्व का क्षण था.
उन लोगों की याद कर उनकी आखों में आँसू छलक आए जिन्होंने डोगरई पर कब्ज़े के लिए अपने प्राण न्योछावर किए थे.
इस लड़ाई के लिए लेफ़्टिनेंट कर्नल डी एफ़ हेड, मेजर आसाराम त्यागी और कैप्टेन के.एस. थापा को महावीर चक्र दिया गया.
वो अकेले सैनिक अफ़सर थे जिनका चित्र मशहूर चित्रकार एम.एफ़ हुसैन ने युद्ध स्थल पर ही बनाया था. वो चित्र अभी भी बरेली के जाट रेजिमेंटल सेंटर म्यूज़ियम में रखा हुआ है 

1 comment:

  1. प्राचीन भारत का इतिहास और मिलने वाले प्रमाण Prachin Bharat प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यतः चार स्रोतों से प्राप्त होती है

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