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स्वतंत्रता दिवस विशेष

आज पूरा हिंदुस्तान स्वतंत्रता दिवस मना रहा है क्योंकि हमारा देश सबसे पहले आता है और हमारी आजादी हमारी जान है। 

                            पर जैसे  मैं अपनी नज़रे थोड़ा दूर लेके जाता हूँ ,मुझे आजादी धुंधली नज़र आने लगती है।  जब मैं उसे पाने की कोशिश करता हूँ मेरी आँखों में कुछ चुभने लगता है पता नहीं क्यों मेरी आजादी मुझे समझ नहीं आती है :-

  • क्या मैं अपनी हक़ की लड़ाई लड़ने के लिए आजाद हूँ ?
  • क्या मैं अपने अधिकार मांगने के लिए आजाद हूँ ?
  • क्या महिलाएं अपनी जिंदगी डर डर के जीने के लिए आजाद है ?
ये सब क्या हमें बिना लड़ाई के नहीं मिल सकते ,जब हमारे पूर्वजों ने आजादी  दीला ही दी  है तो  सब मिली क्यों नहीं ?
जाने ऐसे कितने सवाल मन में उठने लगते है। 

                                                       पर मैं जब उनके लिए सोंचता हूँ या उनसे मिलता हूँ जो अपने अधिकार समझते ही नहीं है ,जिनको ये नहीं पता अपने अधिकारों की लड़ाई  लड़नी कैसे हैं ,मेरा हक़ क्या हैं, क्या मिलाना चाहिए मुझे, कुछ पता नहीं हैं, जो ये सोंचते है शाम होने पे बच्चों को रोटी कहा से दूंगा ,जिनके ऊपर छत आसमान होता है चादर धरती माँ होती  है। उनकी आजादी कहाँ गयी ?
                                                                           वो तो बस यही सोंचते है रोटी कहां से आएगी जो चैन से नींद तो आये।  इनकी आजादी कहां दिखती है ?
  • मुझे ऐसा क्यों लगता है आजादी कुछ सिमित दायरे के अंदर बंद हो गयी है ?
  • क्यों आजादी उसको नहीं मिलती  जिसको उसका हक़ है ?
  • क्यों हमें बार बार बताना पड़ता है की हम आजाद है ?
  • क्यों हम जंहा अपनी आजादी देखते है वंहा दूसरों की आजादी भूल जाते है ?
  • क्यों लड़कियां अपने अधिकारों को नहीं ले पाती ?
  • क्यों महिलाएं ही सिमित दायरे में बंद रहती है ?
यंहा से जब मैं देखता हूँ  मुझे आजादी नज़र नहीं आती है। 
जो लोग हमें आजादी दे गए वो सबके लिए हैं ,वो भी यही चाहते थे हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना नहीं पड़े वो हमें ऐसे ही मिलने चाहिए उन्होंने कोई सिमित रेखा नहीं बनाई थी जो आजादी के लिए हो। 



सोंच बदलो                                                                                                      समाज बदलेगा 

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